उत्तराखण्ड
कहानी एक ऐसे प्रत्याशी की, जो 238 बार चुनाव हार चुका है।
“हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा।” ये कविता है भारत की महान हस्तियों में शुमार अटल बिहारी बाजपेई की। उनके इस बोल को तमिलनाडु के एक व्यक्ति ने इतनी शिद्दत से अपने जीवन में लागू किया है, कि बस क्या ही बताएं। ये जनाब बार बार हारना पसन्द करेंगे लेकिन हार मानना नहीं। अब आप मुझे गरियाना शुरू करें कि मैं किसी का मोराल डाउन कर रही हुं तो उससे पहले इन “मोस्ट मोटिवेट जनाब” के बारे में थोड़ा जान लीजिए। जिनकी में बात कर रही हूं उनका नाम है के पद्मराजन। ये योगी मोदी तो यूं ही बदनाम है असली इलेक्शन किंग तो पद्मराजन है। ये जनाब अबतक कुल 238 बार इलेक्शन लड़ चुके हैं, और किस्मत तो देखिए कि 238 के 238 बार हार गए है। लेकिन वो कहावत है न कि “हार मत मानिए, क्या पता किस्मत आपकी आख़िरी कोशिश का इंतज़ार कर रही हो”, शायद पद्मरजन भी इसी उम्मीद में रहते हैं। ख़ैर, इतनी बार हार मानने के बाद भी पद्मराजान बिलकुल बेफिक्र हैं, और आने वाले लोकसभा इलेक्शन की तैयारी में जुटे हैं। वैसे इन जनाब की तमिलनाडु के मेट्टूर में टायर मरम्मत करने की दुकान है। और यही मेट्टूर इनका चुनावी क्षेत्र भी रहा है। पद्मराजन ने देश में होने वाले सभी चुनाव लड़ चुके हैं। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी, पीवी नरसिम्हा राव, राहुल गांधी जैसे नेताओं के सामने भी उतर चुके हैं। इलेक्शन किंग के नाम से मशहूर पद्मराजन ने राष्ट्रपति से लेकर स्थानीय चुनावों तक देश भर में चुनाव लड़ा है। वह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह और राहुल गांधी से चुनाव हार चुके हैं। इन्होंने पहली बार साल 1988 में चुनाव लड़ा था, अपने गृहनगर मेट्टूर से ही। सन 1988 से लेकर अबतक ये देश में होने वाले सभी चुनाव लड़ते आएं हैं। कंधे पर चमकदार शॉल और ताव देने वाली मूंछों वाले पद्मराजन कहते हैं कि “जब उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ने के लिए नामांकन कराया था तो लोग उन पर हंसे।” लेकिन उन्होंने कहा कि वह यह साबित करना चाहते थे कि एक सामान्य आदमी भी चुनाव लड़ सकता है। उन्होंने कहा कि सभी उम्मीदवार चुनाव में जीत चाहते हैं। लेकिन मुझे इसकी तमन्ना नहीं है। जब हार होती है तो मुझे खुशी होती है, इतनी बार हार चुका हूं कि अब अगर कभी जीत भी गया तो पक्का heart attact ही आ जायेगा। पद्मराजन ने भले ही कोई चुनाव न जीता हो, लेकिन उनकी एक बड़ी जीत लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स नाम कराने की रही है। उन्होंने भारत के सबसे असफल उम्मीदवार के रूप में जगह बनाई है। पद्मराजन ने अपने चुनावी करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2011 में किया था। वह मेट्टूर में विधानसभा चुनाव के लिए खड़े हुए थे। उन्हें 6,273 वोट मिले। जबकि विजेता को 75,000 से अधिक वोट मिले। उन्होंने कहा कि मुझे एक वोट की भी उम्मीद नहीं थी। लेकिन इससे पता चला कि लोग मुझे स्वीकार कर रहे हैं। अपनी टायर मरम्मत की दुकान के अलावा पद्मराजन होम्योपैथिक इलाज भी करते हैं। साथ ही स्थानीय मीडिया के लिए एक संपादक के रूप में काम करते हैं। उन्होंने कहा कि लोग नामांकन करने में झिझकते हैं। इसलिए मैं जागरूकता पैदा करने के लिए एक रोल मॉडल बनना चाहता हूं। पद्मराजन अपनी हर एक नामांकन पत्रों और पहचान पत्रों का रिकॉर्ड भी रखते हैं। सभी को सुरक्षित रखने के लिए लेमिनेटेड करवाया है। चुनावों में चुनाव चिन्ह के रूप में मिले निशान भी मौजूद हैं। जैसे मछली, अंगूठी, टोपी, टेलीफोन, और इस बार टायर। पद्मराजन का कहना है कि वह अपनी आखिरी सांस तक चुनाव लड़ते रहेंगे।अब आप इन्हें हसीं का पात्र कहें या फिर जज्बे का गोदाम, लेकिन इलेक्शन किंग में दम तो है।