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हरीश रावत बनना हर किसी के लिए आसान नहीं . हारी हुई बाजी को कैसे जीतें जानते थे हरदा : क्या हरीश रावत ने अब ले लिया राजनीती से संन्यास ?

उत्तराखण्ड

हरीश रावत बनना हर किसी के लिए आसान नहीं . हारी हुई बाजी को कैसे जीतें जानते थे हरदा : क्या हरीश रावत ने अब ले लिया राजनीती से संन्यास ?

हरीश रावत ने अपनी अघोषित रूप से ही सही लेकिन राजनीतिक पारी खत्म कर दी है। हरिद्वार में अपने बेटे वीरेंद्र रावत को टिकट दिलाने में आखिर उन्हें सफलता मिल गई । सालों से कांग्रेस की सफलता के प्रयास में उनके योगदान के लिए यह दिया जाना उचित भी था लेकिन मेरा मानना है कि वह केवल टिकट दिलवाने में जीते हैं चुनाव बिल्कुल नहीं, चुनाव जीतना उनके बेटे के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी , मैं व्यक्तिगत रूप से किसी भी पार्टी या हरीश रावत का कभी भी प्रशंसक नहीं रहा हूं मुझे हरीश रावत भी उत्तराखंड प्रदेश के उन मुख्यमंत्री जैसे ही लगते हैं जो अभी तक उत्तराखंड में राज किए हैं झूठे वादे किए हैं लोगों को झूठे सपने दिखाए हैं.

लेकिन हरीश रावत बनना आसान नहीं होता वह कई बार चुनाव तो हार गए लेकिन जिंदगी के अनेक महत्वपूर्ण कठिनाइयों से जीत गए उनके जीवन की जटिलता कठिनाई और सक्रियता को हर युवा नेता को सीखना चाहिए जब प्रदेश की मांग हो रही थी उस समय उत्तराखंड में एक बड़े नेता काशी सिंह ऐरी का नाम सभी के मुंह में होता था लेकिन राज्य बनने के बाद काशी सिंह ऐरी रुक गए , पहाड़ में ही कहीं खो गए या यूं कहूं ठहर गए लेकिन उत्तराखंड में हरदा के नाम से पहचान रखने वाले हरीश रावत और ज्यादा मेहनत करते रहे . लोगों को तब लगता था अल्मोड़ा सीट पर 1991, 1996, 1998 और 1999 में भाजपा के जीवन शर्मा और बची सिंह रावत से हार के बाद हरीश रावत टूट जाएंगे। राजनीति छोड़कर घर बैठ जाएंगे जन सरोकार से कोई रिश्ता नहीं रखेंगे लेकिन उन्होंने अपना राजनीतिक पलायन पहाड़ से शहर की ओर कर दिया वह अब शहर की जनता के दिलों में राज करना चाहते थे उनके लिए हरिद्वार से सांसद बनना बिल्कुल भी आसान नहीं था।

हरीश रावत के बारे में लोग कहते हैं जब 2014 में केदारनाथ आपदा के बाद विजय बहुगुणा असफल हुए और विजय बहुगुणा पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे तब 2014 में कांग्रेस ने सत्ता हरीश रावत को सौंप दी . इससे पहले वह कांग्रेस को दो चुनाव जीता चुके थे लेकिन पार्टी के भीतर आए भूकंप ने उनकी कुर्सी का पांव तोड़ दिया तब ऐसा लगा कि हरीश रावत का राजनीतिक सफर यहीं खत्म हो गया लेकिन हरीश रावत पहाड़ की मिट्टी के बने थे दिल से टूट रहे थे लेकिन हिम्मत कहां कोई हारता है एक पहाड़ी चाहे नेता हो या आम आदमी कभी नहीं हारता यही कारण था कि वह और भी मजबूत हो गए । लेकिन इसके बाद पार्टी के अंदर ही हो रहे कलर से पार्टी टूट गई पार्टी पूरी तरह बिखर गई, राज्य में एक बार तो राष्ट्रपति शासन भी लागू कर दिया गया इस बार उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पहुंचकर कुर्सी का पांव ठीक कर दिया । 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री हरीश रावत केवल एक सीट नहीं बल्कि उत्तराखंड की दो विधानसभा सीटों से चुनाव हार गए तब तक वह बूढ़े हो चुके थे लगता था कि वह घर बैठ जाएंगे लेकिन वह पहाड़ जाकर गेठी ,तौड़ खूब खाया कर रहे थे फिर भी उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में नैनीताल सीट से अपनी जिंदगी का दाम खेल दिया लेकिन यह दांव उनके लिए उल्टा साबित हुआ भाजपा नेता अजय भट्ट ने उन्हें तीन लाख से ज्यादा वोटों से हरा दिया। जब यह हार मिली तब लगा की हरीश रावत तो अब तुरंत संन्यास ले ही लेंगे क्योंकि यह उनके लिए बहुत ही दुख देने वाली बात थी लेकिन ठाकुर का खून गर्म होता है वह नरम कैसे पढ़ सकता था तभी यह 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी के रूप में लोगों के बीच देखे गए अनेक लड़ाई- झगड़ों के बाद उन्हें लालकुआं से चुनाव मैदान में उतारा गया , रावत कह भी दिए इस बार चुनाव में हारा तो घर बैठ जाऊंगा लेकिन ऐसा होता कहा है यार ..

रावत चुनाव हारे और जीतने वाले प्रत्याशी से पहले उन्होंने अपनी हार की घोषणा करते हुए फिर मिलने का वादा कर दिया। फिर एक दिन काशीपुर में सड़क हादसे में उनके घायल होने की खबर ने उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल मचा दिया था दूसरे दिन पता चला कि वह अस्पताल से वापस घर आ चुके हैं । उसके बाद भी वह उत्तराखंड में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए प्रयास करते रहे लोग उन पर आरोप लगाते रहे की उत्तराखंड में हरीश रावत के अलावा कोई चेहरा कांग्रेस को दिखता नहीं लेकिन यह भी सच्चाई थी कि हर कोई कार्यकर्ता हरीश रावत की जैसी मेहनत करता भी नहीं ,
हरीश रावत हो या पुष्कर धामी सभी में कुछ कमियां तो राज्य की सेवा में अवश्य रही है लेकिन हरीश रावत ने अपने जीवन के संघर्षों से लोगों को कभी हार न मानने के गुण बता ही दिए..
कांग्रेस में इस समय उत्तराखंड में आप जितने भी बड़े नेता देखते हैं यह कभी बीजेपी या कांग्रेस में अदला-बदली करते रहते हैं लेकिन हरीश रावत एक ऐसा नाम है जो पहले से ही कांग्रेस में रहे और आज तक कांग्रेस में हैं यह नेताओं को एक पार्टी के लिए वफादारी से काम करना सिखाएगा ..

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