उत्तराखण्ड
देवभूमि के देवता भी खंडहरों में रहने लगे .. कभी अनेक साधु आकर यहां प्राप्त करते थे सिद्धि ।।
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हमारे उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है जब आप देवभूमि के पर्वतीय क्षेत्रों में जाते हैं तो आपको जगह-जगह छोटे मंदिर दिखाई देंगे यहां कुछ पत्थर रखकर वहां पर एक संरचना बनाई जाती है जिसमें एक पत्थर की मूर्ति होती है और स्थानीय लोग उस पत्थर को ही भगवान मानकर उनकी पूजा करते हैं …
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इन मंदिरों में कोई विशेष मूर्ति नहीं होती इतिहास में ऐसे अनेक तथ्य छिपे हुए हैं जहां पर उनकी बहुत ही ज्यादा मान्यता रही है लेकिन भारतीय पुरातात्विक विभाग इस संबंध में कभी भी शोध नहीं करता..
चम्पावत जिले के पाटी विकास खंड के अंतर्गत पीपलधिंग गांव से 3km दूर कोटेश्वर नदी के तट पर बने यह मंदिर जनश्रुतियों के अनुसार कत्यूर कालीन हैं… यह अवशेष पत्थर की नकासियो में बने विभिन्न कप मार्क्स,मूर्तियां और प्राचीन शैली से निर्मित मंदिरों की संरचना है !!
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लेकिन इस गांव में आज इन मंदिरों में पूजा नहीं होती स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां बहुत पहले कत्यूरी वंश के लोग इन्हें अपने देवता मानते थे फिर अनेक साधु यहां आए जिन्होंने यहां आकर इन मंदिरों में सिद्धि प्राप्त की और धीरे-धीरे यह मंदिर खंडहर में बदल गए और आज इन मंदिरों में कोई पूजा नहीं होती स्थानीय लोग कहते हैं वैसे तो यह शिव के मंदिर हैं जैसे जागेश्वर की संरचना है उसी तरीके से यहां भी मंदिर बनाए गए होंगे लेकिन धीरे-धीरे पलायन के कारण लोगों की संख्या कम हुई और लोगों ने अपने स्थानीय कुल देवता को पहाड़ में अकेले छोड़ दिया ..
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शायद ही पुरातात्विक विभाग ने इनके संबंध में कभी शोध किया है ।।
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