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शादी की तारीख आने ही वाली है : दुल्हे अभी तक हैं लापता ? ऐसे में कैसे बजेगी सुख की शहनाई ?

राजनीति

शादी की तारीख आने ही वाली है : दुल्हे अभी तक हैं लापता ? ऐसे में कैसे बजेगी सुख की शहनाई ?

आज भारत की राजनीति अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है कितना अजीब लगेगा जब बारात जाने के वक्त हो और यह तय नहीं हो कि दूल्हा कौन है कुछ ऐसी ही स्थिति चुनाव में कांग्रेस की इस समय देखने को मिल रही है .. कांग्रेस के बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं कांग्रेस हमारे देश की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण पार्टी रही है लेकिन आज के दौर में कांग्रेस से बुरी स्थिति में कोई नहीं है जहां भाजपा अपने प्रत्याशियों के प्रचार में शामिल हो गई है वहीं कांग्रेस में अभी मंथन ही मंथन चल रहा है इतना मथने के बाद भी मक्खन नहीं निकल रहा . आज की यह स्थिति राजनीति के तनाव को दिखाती है राजनीतिक दलों के साथ-साथ राजनीतिक खिलाड़ियों के खोखलेपन को उजागर करती है बल्कि उनको एक हास्य पात्र भी बना दिया गया है ..वर्तमान राजनीतिक स्तिथि को दर्शाने के लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं है आज कल कुछ नेताओं के बयान और बोलने की भाषा ही बता देती है कि असली राजनीति अपने बुरे दौर से गुजर रही है कई सालों से विकास और सुशासन की बात तो अवश्य हो रही है लेकिन सुशासन कहां नजर आता है किस पार्टी में नजर आता है.. कुल मिलाकर राजनितिक पार्टी आंतरिक समस्याओं से नहीं उभर पा रही हैं सिद्धांत विहीन चुनाव लोकतंत्र के भविष्य में प्रश्न चिन्ह खड़े कर रहा है राजनीति में एक मशहूर कहावत है आया राम गया राम यह वही गया लाल थे जिन्होंने एक ही दिन में तीन पार्टियों को बदल दिया था वह बदनाम हुए लेकिन आज के नेता और विधायक भी तो यही कर रहे हैं इसके उदाहरण केवल उत्तराखंड ही नहीं देश के सभी राज्यों में आपको देखने को मिल जाएंगे भारतीय राजनीति में नेताओं की पार्टी बदलने की परंपरा आम बात हो गई है सालों तक किसी पार्टी से जुड़े रहने के बावजूद नेता मन मुताबिक पद नहीं मिलने पर पाला बदल लेता है इन दलबदलू नेताओं की इस प्रवृत्ति को क्या कहा जाए इसी तरह की कुछ घटनाओं को देखकर विदेशी संस्थाओं ने भारत को ‘स्वतंत्र लोकतंत्र’ की श्रेणी से हटाकर ‘आंशिक तौर पर स्वतंत्र लोकतंत्र’ की श्रेणी में डाल दिया . लेकिन यह एक विदेशी साजिश कहकर हम दूर भाग गए ।दरअसल, कुछ लोग हैं जिन्होंने ख़ुद को दुनिया का रक्षक घोषित कर दिया है,जो सदन कभी जनता के सवालों पर गूंजता था,एक से बढ़कर एक वक्ताओं के ऐतिहासिक भाषणों की संसद से लेकर सड़क तक चर्चा होती थी, आज वही लोकतंत्र, वही सदन दाग़ी नेताओं की उपस्थिति और उसके खेल से शर्मसार है।इसमें कोई शक नहीं कि देश की संसद और विधान सभाएं दागी नेताओं की पहुँच और उनके बदनाम चरित्र से दागदार हुई है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि संसदीय राजनीति करने वाले बहुत सारे नेताओं पर राजनीतिक मुक़दमे भी बड़ी तादाद में दर्ज होते रहे हैं। कभी विरोधी पक्ष सामने वाले की राजनीति को दागदार बनाने के लिए झूठे मुक़दमे दर्ज करने में कोई कोताही नहीं बररते तो कभी एक ही पार्टी के सामानांतर नेता दूसरे की तुलना में अपने को श्रेष्ठ बनाने के लिए सामने वाले नेताओं को दागी बनाने से नहीं चूकते। लोकतंत्र का यह खेल भी कम मनोरंजक नहीं। उदहारण हम किसी एक व्यक्ति का नहीं देंगे लेकिन अपने अगल-बगल आप देखोगे तो आपको खुद समझ में आ जाएगा. लोकसभा से लेकर विधान सभाओं में दागी नेताओं की भरमार है तो राज्यसभा और विधान परिषद में करोड़पतियों और धनकुबेर व्यापारियों का अधिपत्य बन गया है दागी नेता हमारे लिए कानून बना रहे हैं तो करोड़पति नेता हमारे आर्थिक विकास की नीतियां बनाते हैं। गजब का तमाशा है। इसे हम लोकतंत्र कहें या फिर दागी तंत्र . सच यही है मौजूदा राजनीति लोकतंत्र को चिढ़ा रही है और दागी-धनकुबेर नेताओं की वजह से लोकतंत्र हांफ रहा है। हम इस स्थिति को देखने के लिए मजबूर हैं .

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