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जिनकी 12 साल की उम्र में शादी होना ,15 साल में तीन बच्चे हो जाना, बाद में घर से भागना फिर साहित्यकार बन जाना! अंत में कैंसर से हॉस्पिटल में अकेले लड़ना यह कहानी है बेबी हालदार की ।।

उत्तराखण्ड

जिनकी 12 साल की उम्र में शादी होना ,15 साल में तीन बच्चे हो जाना, बाद में घर से भागना फिर साहित्यकार बन जाना! अंत में कैंसर से हॉस्पिटल में अकेले लड़ना यह कहानी है बेबी हालदार की ।।

आज हम आपको एक ऐसी संघर्षशील महिला की कहानी बताने वाले हैं जिस पर एक नहीं दो नहीं तीन नहीं सैकड़ो ऐसी परेशानी आई जिसके बाद हर कोई टूट जाता, बिखर जाता, लेकिन इतनी परेशानियों के बाद भी यह महिला बन गई भारत ही नहीं पुरे विश्व की जानी – मानी लेखिका लेकिन आज फिर जिंदगी में मुसीबत का सामना करने के लिए मजबूर हो गई अस्पताल में भर्ती होने के बाद भी कोई साथ नहीं दे रहा पैसों की भी है बहुत तंगी विस्तार से पड़ लीजिए इस संघर्षशील महिला की कहानी को :
अगर इंसान कुछ पाने की इच्छा हो तो वह जरुर पा सकता है. चाहे उसके जीवन में कितनी भी समस्याएं आएं लेकिन वह उन समस्याओं ने लड़कर अपने भविष्य को बदल सकता है. एक ऐसी महिला लेखिका के बारे में बताएंगे जिसने घनघोर अत्याचार से लड़कर जीवन में सफलता की बुलंदियों को प्राप्त किया. सन 1973 में कश्मीर में जन्मी बेबी हालदार का जीवन बहुत ही ज्यादा संघर्षों के बीच से होते हुए गुजरा है. बेबी हालदार महज 4 साल की उम्र की थी जब उनकी मां दुनिया छोड़ कर चली गई. बेबी का पालन पोषण उनके पिता ने ही किया. बेबी के पिता काशी बहुत ज्यादा शराब पिया करते थे, जिसके बाद वह बेबी को मारते थे. मां के गुजरने के बाद बेबी के पिता उन्हें लेकर पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर चले गए. जहां उन्होंने दूसरी शादी कर ली. जिसके बाद घर में सौतेली मां के आते ही उनकी जिंदगी और बेकार हो गई. वह बेबी से घर के सारे काम कराती और न काम करने पर मारती–पीटती थी. बेबी अब घर में ही नौकरानी बन गई थी ..
जब बेबी महज 12 साल की थी तब उनका विवाह 28 वर्ष के आदमी के साथ कर दिया गया. विवाह के बाद बेबी को लगा कि अब उनकी जिंदगी संवर जाएगी और अत्याचारों से मुक्ति मिलेगी ,परंतु इसका उल्टा ही हुआ. कहते हैं कुछ लोगों की जिंदगी में भगवान दुखों के अलावा कुछ लिखता ही नहीं है. ठीक इसी तरह बेबी हालदार का दुख कम होने के बजाए बढ़ गया था .बेबी के पति ने महज 12 साल की उम्र में ही जबरदस्ती की जिससे वह एक बच्चे की मां बन गई. बेबी जब 15 साल की हुई तब तक वह 3 बच्चों की मां बन चुकी थी. बच्चे होने के बाद भी पति का अत्याचार कम नहीं हो रहा था. वह बेबी को रोज मारता और गन्दी-गन्दी गालियां देता था. जिसकी वजह से वह पति से बहुत परेशान हो चुकी थी.
आखिरकार साल 1999 में वह समय आया जब बेबी ने एक साहसी निर्णय लिया. बेबी ने अपने पति का घर छोड़ कर भाग जाने का निर्णय लिया. बेबी ने अपने तीनों बच्चों को साथ लिया और घर से निकल गई. वह ट्रेन में बैठकर दिल्ली के गुरुग्राम पहुंच गई . जहां वह झोपड़ी बनाकर अपने बच्चों के साथ रहने लगी और गुजारा करने के लिए लोगों के घर में झाड़ू पोछा लगाने का काम करने लगी. संयोग से बेबी ने एक घर का दरवाजा खटखटाया. उस घर के मालिक कोई और नहीं बल्कि मुंशी प्रेमचंद के पोते प्रबोध कुमार थे.जिसके बाद बेबी की किस्मत बदल गई. बेबी प्रबोध कुमार के घर में झाड़ू पोछा लगाने का काम करती थी इसी दौरान प्रबोध कुमार के घर में रखी हुई किताबों के ऊपर बार-बार बेबी नजर डालती थी. प्रबोध कुमार ने बेबी की इन हरकतों को नोटिस किया. एक दिन बेबी हालदार को पेन और कागज दे कर प्रबोध कुमार ने कहा कि वे अपने बारे में जो भी मन में आए वह सब कुछ इस कागज पर लिख दें. जब प्रबोध कुमार ने बेबी से लिखने को कहा तो उन्होंने अपने बीते हुए कल के बारे में लिखना शुरू कर दिया और वह लिखती चली गई.बेबी ने अपनी जीवन के बारे में जो कुछ भी लिखा वह प्रबोध कुमार को दिखाया. प्रबोध कुमार ने बेबी के द्वारा बांग्ला भाषा में लिखा हुआ हिंदी अनुवाद कर दिया प्रबोध कुमार बेबी हारदार की जीवनी पढ़कर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसकी एक किताब बना डाली. किताब का नाम रखा गया ‘आलो आंधारि’. इस किताब को पाठकों के द्वारा इतना पसंद किया गया कि यह किताब पूरे देश में धीरे-धीरे करके फैल गई. इस किताब का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया है इस किताब विदेशों में भी काफी पसंद किया गया. अपने जीवन की घटनाओं को कागज पर उतारने वाली बेबी हालदार देखते ही देखते एक फेमस लेखिका बन गई. जिसके बाद उन्होंने 4 किताबें और लिखीं.
लेकिन आज यह लेखिका कैंसर रोग से पीड़ित हैं और कोलकाता के एक अस्पताल में अकेले ही अपना इलाज करवा रही हैं तीन किताब लिखने के बाद भी पैसों की तंगी से जूझते हुए अपनी जिंदगी के अंतिम चरणों को गिन रही हैं इस समय उन्हें पैसों की जरूरत है जिसका जीवन ही कठिनाइयों से बना हो वह इस कठिनाई का भी मुकाबला कर ही रही हैं लेकिन हमारे देश में अनेक लेखकों को अनेक पुरस्कार मिले लाखों की मदद की गई लेकिन जो असली लेखक अपने जीवन के संघर्षों को देखकर बनी आज उसे 140 करोड़ की जनता ने अकेले छोड़ दिया है अनेक पाठकों का कहना है कि बेबी हालदार में उन्हें असली साहित्यकार नजर आता है अगर वह सुरक्षित रही तो और कुछ बेहतर किताबें लिख सकती हैं लेकिनआज उन्हें फंडिंग की जरूरत है जो भी लोग इस समय उनकी हेल्प कर सकते हैं वह हेल्प अवश्य करें ..

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