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यादों के झरोखे से -एक ऐसा निर्दलीय प्रत्याशी जो तीन बार चुनाव लड़ा और मंत्रियों को हरा दिया था : स्वाभिमान ऐसा की कभी भी किसी भी पार्टी में शामिल नहीं हुए ।।

उत्तराखण्ड

यादों के झरोखे से -एक ऐसा निर्दलीय प्रत्याशी जो तीन बार चुनाव लड़ा और मंत्रियों को हरा दिया था : स्वाभिमान ऐसा की कभी भी किसी भी पार्टी में शामिल नहीं हुए ।।

हरिद्वार – जहां आजकल के नेता एक दिन इस पार्टी में दूसरे दिन दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं लेकिन एक ऐसे भी नेता थे जिन्होंने अपने स्वाभिमान के साथ कभी भी समझौता नहीं किया ।। उन्होंने तीन बार चुनाव लड़ा और तीन बार ही मंत्रियों को हरा दिया लेकिन फिर भी निर्दलीय ही चुनाव लड़ते रहे , उन्हें जनसभा करने के लिए मंचों की जरूरत नहीं पड़ती थी वह कहीं भी चाय की टपरी के सामने स्टूल में खड़े होकर ही भाषण दे दिया करते थे अगर कहीं ग्रामीण क्षेत्र में चले गए तो घोड़े में बैठकर भाषण देते थे जी हां हम बात कर रहे हैं घोड़े में बैठकर चुनाव प्रचार करने वाले अनोखे सांसद ठाकुर यशपाल सिंह की । जो कभी भी किसी भी पार्टी से चुनाव नहीं लड़े जब भी लड़े निर्दलीय लड़े और कभी नहीं हारे, वह हरिद्वार जिले के रुड़की के समीप पनियाला गांव के रहने वाले थे उन्होंने तीन चुनाव अपनी जिंदगी में लड़े और तीनों ही जीत गए।।


साल था 1957 में जब ठाकुर यशपाल सिंह ने सहारनपुर जिले की देवबंद विधानसभा सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा और यूपी के कैबिनेट मंत्री ठाकुर फूल सिंह को हराकर सबको चौंका दिया था, तब हरिद्वार जिला सहारनपुर जिले में ही था।।
1962 में ठाकुर यशपाल ने मुजफ्फरनगर जिले के कैराना लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा तब उन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल के करीबी सदस्य अजीत प्रसाद जैन को पराजित किया था उनकी इस जीत पर नेहरू भी अचंभित हो गए थे ठाकुर यशपाल 1967 में देहरादून हरिद्वार सहारनपुर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़े उनके सामने इस बार पंडित नेहरू के सबसे करीबी मित्र महावीर त्यागी थे , यसपाल जानते थे कि त्यागी का प्रभाव देहरादून में बहुत ही बेहतर है लेकिन उन्होंने हरिद्वार ,सहारनपुर, रुड़की, देवबंद के क्षेत्र में लोगों को अपने और खींच लिया । इसी कारण से वह ज्यादा समय देहरादून में न देकर सहारनपुर- हरिद्वार में दिया करते थे : नतीजा यह हुआ कि उन्होंने एक बार फिर से दिक्कत कांग्रेस नेता महावीर त्यागी को हरा दिया उन्होंने कभी किसी भी चुनावी सभा का आयोजन ही नहीं किया , वह सब्जी मंडी, घास मंडी, चौक बाजार ,कचहरी के बाजार, रेलवे स्टेशन के सामने छोटी-छोटी सभाएं किया करते थे फिर उन्हें एक बीमारी लगी और वह सन 1972 में छोटी ही उम्र में इस दुनिया में को छोड़कर हमेशा के लिए चले गए. उनके मरने के बाद उनके घर में तब के राष्ट्रपति वी.पी गिरी उनके परिवार जनों को संवेदना देने के लिए आए थे ।।
क्या आज के नेता ऐसा कर पाएंगे एक सवाल है ।।

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