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किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय लखनऊ के प्रोस्थोडॉन्टिक्स और क्राउन एंड ब्रिजेस विभाग एवं माहीडोल विश्व विद्यालय द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का दूसरा दिन।

उत्तर प्रदेश

किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय लखनऊ के प्रोस्थोडॉन्टिक्स और क्राउन एंड ब्रिजेस विभाग एवं माहीडोल विश्व विद्यालय द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का दूसरा दिन।

लखनऊ-किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय लखनऊ के प्रोस्थोडॉन्टिक्स और क्राउन एंड ब्रिजेस विभाग एवं माहीडोल विश्व विद्यालय द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आज दूसरा दिन था।
मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थोडॉन्टिक्स में अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के तीन व्याख्यान हुए। डॉ. तीर्थवज श्रीथवज ने चेहरे के विकृतियों के प्राकृतिक रूप में पून: निर्मित करने के अपने 25 वर्षों के चिकित्सीय ​​अनुभव पर व्याख्यान दिया। डॉ. नाथधनई ने कृत्रिम अंग की मूल बातें समझाईं और डॉ. बिनित श्रेष्ठ ने इम्प्लांट रिटेन्ड नेत्र जैसे कृत्रिम अंग के बारे में बात की। इम्प्लांट रिटेन्ड आई प्रोस्थेसिस और नए कंप्यूटराइज़्ड कैड -कैम प्रोस्थेसिस के विभिन्न लाभों और समस्याओं पर विस्तृत चर्चा हुई।


कार्यशाला तीन सत्रों में आयोजित की गई जिसमें नेत्र प्रोस्थेसिस बनाना सिखाया गया जिसमें आईरिस स्टेनिंग, नेत्र प्रोस्थेसिस का मोम पैटर्न और स्टेनिंग के साथ सिलिकॉन पैकिंग शामिल थी।
प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला के माध्यम से उपयोग की जाने वाली नई तकनीक के बायोकॉम्पेटिबल सामग्रियों और उनके प्रयोग विधि के बारे में सीखा।
भाग लेने वाले प्रोस्थोडोंटिस्ट ने कृत्रिम अंग में शामिल सूक्ष्मता और विवरण को सीखा, जिससे नेत्र संबंधी और चेहरे के विकृतियों से पीड़ित रोगियों के प्राकृतिक स्वरूप पून: देने की प्रक्रिया के बारीकियों से अवगत हुए ।
आयोजन अध्यक्ष डॉ. पूरन चंद ने कहा कि भारत में अधिक रोगियों को इम्प्लांट रिटेन्ड आई प्रोस्थेसिस जैसे उन्नत उपचारों का लाभ मिलना चाहिए। इसके लिए हमें अधिक संख्या में प्रशिक्षित प्रोस्थोडोंटिस्ट की आवश्यकता है और इसलिए देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे शिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
मरीजों को कम लागत और विश्वअस्तरीय चिकित्सा आम भारतीय नागरिकों तक उपलब्ध कराना हमारा प्राथमिक लक्ष्य है।
डॉ. सुनीत जुरैल ने इस बात पर जोर दिया कि बढ़ती प्रौद्योगिकियों के साथ तालमेल बिठाने और हमारे डॉक्टरों के वर्तमान ज्ञान को उच्चक्रित करने के लिए ऐसी कार्यशालाएं अक्सर आयोजित की जानी चाहिए।
डॉ बलेन्द्र प्रताप सिंह , डॉ रघुबर दयाल सिंह ,डॉ भास्कर अग्रवाल तथा डॉ शुचि त्रिपाठी आदि चिकित्सा शिक्षकों ने प्रतिभागी चिकित्सकों को प्रशिक्षित करने में सक्रिय योगदान दिये ।कार्यशाला कल भी जारी रहेगा

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