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बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में संकटों का सामना करती पहाड़ की महिलाएं ।। नदियों में हो रहे प्रसव का जिम्मेदार कौन ?

पिथौरागढ़

बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में संकटों का सामना करती पहाड़ की महिलाएं ।। नदियों में हो रहे प्रसव का जिम्मेदार कौन ?

कभी भी सुख की दो रोटी नहीं खा पाई पहाड़ की महिलाएं

पिथौरागढ़: पहाड़ों की महिलाओं ने कभी भी सुख दिन नहीं देखे । हमेशा संघर्ष करती हैं महिलाएं आज भी वर्षों पुरानी जिंदगी जीने को मजबूर हैं । पहाड़ों में महिलाओं को हर रोज़ नई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सड़क और अस्पताल की सुविधा न होने के कारण महिलाओं को जिन्दगी से अक्सर जूझना पड़ता है।

गांव से सड़क 6 किलोमीटर दूर

पिथौरागढ़ जिले के एक दूरस्थ गांव का है जहां प्रसव के लिए महिला को उसके परिजन और गांव की आशा वर्कर अस्पताल ले जा रहे थे। गांव से सड़क 6 किलोमीटर दूर होने के कारण वह लोग महिला को पालकी में बैठाकर ले जा रहे थे। आपको बता दें अस्पताल उनके गांव से 25 किलोमीटर दूर पड़ता है। लेकिन रास्ते में ही पालकी में सवार गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। जिस कारण परिजनों और आशा वर्कर को महिला की डिलीवरी जबुजा नदी के तट पर करनी पड़ी थी । जहां महिला ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया जिनमें से एक बच्चा मृत निकला।

गर्भवती महिला को पालकी से ले जा रहे थे अस्पताल

महिला के परिजनों का प्लान गर्भवती महिला को गौचर स्थित अस्पताल ले जाने का था, गौचर में स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रसव के लिए अन्य चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं। लेकिन रास्ते में ही महिला को असहनीय प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। जिस कारण मजबूरन महिला की डिलवरी नदी के किनारे करनी पड़ी। जहां पर महिला ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। जिनमे से एक बच्चा मृत पैदा हुआ हुआ।

कई बार महिलाओं के जीवन में बनता है खतरा

वहां मौजूद आशा कार्यकर्ता पुष्पा देवी ने बताया की इतनी दुखद परिस्थितियों के बावजूद मां और जीवित बच्चे का स्वास्थ्य ठीक है।ग्रामीण लोगों ने बताया कि रायसपाटा के लोग 2009 से सड़क की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हेमा की कहानी पहाड़ की गर्भवती महिलाओं को अस्पताल ले जाने के खतरों को दिखाती है, जो कई बार उनके जीवन के लिए खतरा हो सकता है।

महिलाओं के नाम पर बड़े-बड़े दावे फेल

अब सवाल यह है कि कब तक पहाड़ की महिलाएं अपने जीवन के साथ संघर्ष करती रहेगी महिलाओं के नाम पर सब लोग बड़े-बड़े दावे करते हैं लेकिन पहाड़ की महिलाएं आज भी अपनी जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करती हैं। आखिर कब उन्हें अब उनके ही क्षेत्र में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पाएंगे यह केवल एक सवाल रह जाता है ।।

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