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मैक्सियोफेशियल प्रोस्थेटिक्स की अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ आयोजन।

उत्तर प्रदेश

मैक्सियोफेशियल प्रोस्थेटिक्स की अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ आयोजन।

शिवम मिश्रा

लखनऊ-मैक्सियोफेशियल प्रोस्थेटिक्स की अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन 29 फरवरी से 2 मार्च तक माहिडोल यूनिवर्सिटी, बैंकॉक, थाईलैंड के सहयोग से केजीएमयू, लखनऊ के प्रोस्थोडॉन्टिक्स और क्राउन एंड ब्रिज विभाग द्वारा किया गया ।

दंत चिकित्सा केवल दांतों और मुख के संरचनाओं की समस्याओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आंख, नाक, कान आदि का कृत्रिम अंग बनाने की विधा भी शामिल है।
इस अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन 29 फरवरी को हुआ जिसमें केजीएमयू की कुलपति प्रोफेसर सोनिया नित्यानंद मुख्य अतिथि थीं। लेकिन कुछ व्यस्तताओं के कारण वह शामिल नहीं हो सकीं।
प्रोफेसर रंजीत कुमार नामदेव पाटिल, डीन, दंत चिकित्सा विज्ञान संकाय मुख्य अतिथि थे। पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अरविन्द त्रिपाठी सम्मानित अतिथि थे और महिदोल विश्वविद्यालय के डॉ. एम. एल तीर्थवज श्रीथवज उद्घाटन समारोह में अतिथि भाषण दिये ।


प्रो. रंजीत पाटिल ने उल्लेख किया कि ऐसी कार्यशालाओं से क्षेत्र में शैक्षणिक और चिकित्सीय प्रगति होती है। प्रोफेसर अरविंद त्रिपाठी ने कहा कि मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थोडॉन्टिक्स को प्रोस्थोडॉन्टिक्स की एक अलग शाखा के रूप में माना जाना चाहिए और हमारे देश के विभिन्न राज्यों में इसके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थापित किए जाने चाहिए।
सम्मेलन के आयोजन अध्यक्ष प्रो. पूरन चंद ने कहा कि जिन रोगियों के चेहरे के अंग विकृत होते हैं, उन्हें कुछ स्थानों पर एक अपशकुन माना जाता है, भले ही हम एक विकासशील देश हों। मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेटिक ऐसे रोगियों के सौंदर्य के साथ मानसिक स्थिति में सुधार करके उन्हें एक नया जीवन देता है और उनके आत्मविश्वास को बढाता है ।
आयोजन सचिव- प्रो. सुनीत कुमार जुरेल ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।

प्रोफ़ेसर पूरन चंद ने आगे बताया कि रेटिनोब्लोस्टोमा और अन्य कैंसर तथा म्यूकर माइकोसिस जैसे संक्रमण और दर्दनाक चोटों से पीड़ित मरीजों की आंख और अन्य संरचनाओं को शल्य चिकित्सा द्वारा रोगी के हित में काटना या हटाना पड़ जाता है।
केजीएमयू, लखनऊ के प्रोस्थोडॉन्टिक्स विभाग की ओपीडी में हर महीने औसतन पंद्रह से बीस ऐसे भी मरीज आते हैं। कृत्रिम नेत्र से रोगी की दृष्टि में सुधार नहीं होगा, लेकिन यह रोगी को समाज में दृष्टिगत रूप से देखने लायक़ सुन्दर बना देता है जिससे उनके आत्मविश्वास और व्यक्तित्व के स्तर में सुधार होजाता है
ऐसे पुनर्वास करने वाले प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी है और हमारा उद्देश्य देश भर में ऐसी कार्यशालाएं और प्रशिक्षण शुरू करना है।
निजी प्रैक्टिस में नियोजित होने पर ऐसे उपचार बेहद महंगे होते हैं जो अधिकांश भारतीय आबादी के लिए मददगार नहीं हो सकते हैं। यहां केजीएमयू में यह इलाज न्यूनतम या बिना किसी शुल्क के किया जाता है।
इस अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में सौ से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें हमारे देश के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ पड़ोसी देशों, चिकित्सा शिक्षक सेना के चिकित्सक और निजी चिकित्सक भी शामिल थे।
इस कार्यशाला का मिशन सभी प्रतिभागियों को एक व्यापक स्रोत सामग्री और व्यावहारिक अनुभव प्रदान करना था ताकि वे अपनी कार्य क्षेत्रों में और चिकित्सालयों में गुणवत्तापूर्ण अच्छी एवं सस्ती उपचार जन सामान्य को दे सके ।यह कार्यशाला आगे दो दिनों तक चलेगी ।

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