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अल्मोड़ा – केदारनाथ से इस मेले का है विशेष संबंध : नदी में पत्थर फेंक क्यों मनाया जाता है सोमनाथ मेला ।।

अल्मोड़ा

अल्मोड़ा – केदारनाथ से इस मेले का है विशेष संबंध : नदी में पत्थर फेंक क्यों मनाया जाता है सोमनाथ मेला ।।

इस मेले की अनोखी परम्परा

चौखुटिया । उत्तराखंड में लगने वाले मेलों की पहचान दूर-दूर तक है। उत्तराखंड का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जहां के मेले प्रसिद्ध ना होते हों, हर मेले की अपनी एक झलक होती है हर मेला क्षेत्र में खुशी फैला देता है । मेले हमारी संस्कृति और परंपराओं के वाहक होते हैं। अल्मोड़ा के चौखुटिया क्षेत्र में ऐतिहासिक सोमनाथ मेले की भी अलग पहचान है।

रामगंगा नदी में पत्थर फेंकने की है रस्म

सात दिवसीय इस मेले में कल से विभिन्न सांस्कृतिक और व्यापारिक गतिविधियां पूरे जोश पर रहेंगी। इस मेले का शुभारंभ 13 मई को रामगंगा नदी में पत्थर फेंकने की रस्म के साथ शुरू होगा। जबकि, मेले का समापन सात दिन बाद 19 मई को होगा। सोमनाथ मेले की शुरुआत लगभग सवा तीन सौ साल पूर्व कत्यूरी राजाओं के समय में हुई थी। हर साल वैशाख माह के अंतिम सोमवार को यह मेला मासी रामगंगा तट पर सोमनाथेश्वर मंदिर के पास लगता है।

केदारनाथ के कपाट खुलने के बाद लगता है मासी में सोमनाथ मेला

बाबा केदारनाथ के कपाट खुलने के बाद मासी में सोमनाथ मेला भी शुरू हो जाता है। इसमेंमासीवाल व कनौणी दो धड़े (ऑल) नगाड़े और निशान लेकर रामगंगा नदी में बारी-बारी से पत्थर फेंककर रस्म अदायगी करते हैं।

यह प्रमुख गांव इस मेले में होते हैं शामिल

मेले के आयोजन में मासीवाल ऑल से मासी, ऊचावाहन, कबडोली, कनरै, खनुली, झुडंगा, नौगांव, टिमटा और कनौणिया ऑल से कनौणी, चौना, आदिग्राम, कनौडिया, भटोली, छानी, डांग ग्राम पंचायतों के ग्रामीण बाजे- गाजे के साथ मेले में पहुंचते हैं। और ख़ूब जश्न मनाते हैं ।।

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