धर्म-संस्कृति
आखिर क्या हो सकता है आमलकी एकादशी का उपवास रखने से?
आज 20 मार्च 2024 दिन बुधवार आमलकी एकादशी उपवास रखा जाएगा तथा चीर बंधन व रंग धारण के साथ बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व होली का शुभारंभ होगा।
आमलकी एकादशी वर्ष में सभी एकादशियों में से महत्वपूर्ण एकादशी मानी गई है आमलकी एकादशी का उपवास रखने मात्र से ही व्यक्ति को स्वर्ग और मोक्ष दोनों ही प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यतानुसार आमलकी एकादशी का उपवास रखने से जातक को एक हजार गौ दान के बराबर पुण्य प्राप्त होता हैं।
रंग धारण चीर बंधन का समय 20 मार्च 2024 अपराह्न 1:19 से पूर्व रहेगा तदोपरांत भद्रा प्रारंभ।
आप सभी के मन में यह विचार अवश्य आता होगा कि चीर बंधन क्यों किया जाता है
मंदिरों में होली से पूर्व एकादशी पर खड़ी होली के पहले दिन चीर बांधने का अपना ही महत्व है। इस दिन सभी जातक एक लंबे डंडे में नए कपड़ों की कतरन को बांधकर मंदिर में स्थापित करते हैं। फिर चीर के चारो ओर लोग होली गायन करते हैं और घर-घर जाकर होली गाते हैं। होलिका दहन के दिन इस चीर को होलिका दहन वाले स्थान पर लाते हैं और डंडे में बंधे कपड़ों की कतरन को प्रसाद के रूप में वितरित करते हैं। जिसे लोग अपने घरों के मुख्य द्वार पर बांधते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे घर में बुरी शक्तियों का प्रवेश नहीं होता और घर में सुख शांति बनी रहती है।
होली पर्व मनाने का वैज्ञानिक कारण
हिंदू धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमें एक पर्व त्योहार मनाने के पीछे वैज्ञानिक रहस्य भी होते हैं हम आपको बताने का प्रयास करते हैं कि होली पर्व मनाने का वैज्ञानिक कारण क्या है।
होली पर्व बसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है शरद ऋतु का समापन और बसंत ऋतु के आगमन का समय पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि को बढ़ा देता है लेकिन जब होलिका जलाई जाती है तो उससे करीब 145 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान बढ़ता है। होलिका दहन पर आग की परिक्रमा करने से सभी बैक्टीरिया समाप्त हो जाते हैं और आसपास का वातावरण शुद्ध होता है। इसके अतिरिक्त वसंत ऋतु के आसपास मौसम परिवर्तन होने के कारण मनुष्य आलस/सुस्ती से ग्रसित हो जाता है जिसे दूर करने हेतु जोर-जोर से संगीत सुनता एवं गाता है। प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करने से शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है।
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